बेंगलुरू। पूरे कर्नाटक में बड़े विवाद और सांप्रदायिक तनाव का कारण बने हिजाब विवाद पर हाई कोर्ट का फैसला मंगलवार को आएगा। स्कूल और कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहन कर क्लास रूम में जाने के मसले पर पिछले साल दिसंबर में विवाद शुरू हुआ था। एकल जल के बेंच की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इस मामले में दो हफ्ते तक लगातार सुनवाई की और उसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। मंगलवार को फैसले का ऐलान किया जाएगा।
हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ में चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस जेएम खाजी और जस्टिस कृष्ण एम दीक्षित शामिल हैं। एकल जज बेंच में जस्टिस कृष्ण एम दीक्षित ने मामले की सुनवाई की थी। तीन जजों की पूर्ण पीठ के सामने सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार की ओर से कहा गया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं है और धार्मिक निर्देशों को शैक्षणिक संस्थानों के बाहर रखना चाहिए।
कर्नाटक के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नावदगी ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कहा था- हमारा यह रुख है कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि ‘हमें अपने धार्मिक निर्देशों को शैक्षणिक संस्थानों के बाहर रख देना चाहिए। एडवोकेट जनरल के मुताबिक, सिर्फ आवश्यक धार्मिक परंपरा को संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण मिलता है जो नागरिकों को अपनी पसंद के धर्म का आचरण करने की गारंटी देता है।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में कहा गया था कि हिजाब पर रोक कुरान पर प्रतिबंध लगाने के समान है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने हिंदू और सिख धर्म के प्रतीक धारण करके क्लास रूम में जाने का मुद्दा भी उठाया था। गौरतलब है कि मुस्लिम छात्राओं को शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहन कर प्रवेश से रोकने को लेकर विवाद दिसंबर में शुरू हुआ था, जब कर्नाटक के उडुपी जिले की छह छात्राओं ने रोक पर विरोध जताया था। उसके बाद छात्राओं ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी। तभी से यह मामला बढ़ता चला जा रहा है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने फिलहाल कोई भी धार्मिक प्रतीक पहनकर स्कूल जाने पर अस्थायी रोक लगाई हुई है।
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