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Up Assembly Election 2022 Jatland has made Akhilesh yadav jayant chaudhary political maths messed up | UP Assembly Election 2022: जिसके जाट, उसके ठाट…लेकिन जाटलैंड में फैलते असंतोष से अखिलेश का सियासी गणित हो रहा गड़बड़?

पश्चिम यूपी में जाट गणित क्या होगा. ये पूरी तरह से साफ नहीं है लेकिन समाजवादी पार्टी को बदलते माहौल का डर भी सता रहा होगा. क्योंकि वेस्ट यूपी का चुनावी इतिहास भी कुछ ऐसा ही कह रहा है.

UP Assembly Election 2022: जिसके जाट, उसके ठाट...लेकिन जाटलैंड में फैलते असंतोष से अखिलेश का सियासी गणित हो रहा गड़बड़?

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (फाइल फोटो).

उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव (UP Assembly Election 2022) पश्चिमी पट्टी से शुरू होता है जहां बीजेपी ने पिछले चुनाव में क्लीन स्वीप किया था और 90 फीसदी सीटें अपने नाम की थी. लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी ने अपने इस गढ़ को और ज्यादा मजबूत कर लिया है. पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपने इस गढ़ को गठबंधन से महा-मजबूत कर लिया है. लेकिन जाटलैंड में अखिलेश का गणित गड़बड़ होता दिख रहा है. मेरठ, मुजफ्फरनगर से लेकर मथुरा तक RLD-SP के गठबंधन में दरार आती दिख रही है. मथुरा में आरएलडी के टिकट पर समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट को उतार देने से पार्टी कार्यकत्रा नाराज हैं तो मथुरा में एक सीट पर RLD कैंडिडेट के पर्चा भर देने के बाद SP को सीट दे दिए जाने से नाराजगी है जबकि मुजफ्फरनगर में गठबंधन ने एक भी सीट से मुस्लिम कैंडिडेट को नहीं उतारा है. इससे मुसलमान नाराज हैं. खासतौर पर मेरठ में भी जाट इस बात से नाराज हैं कि वहां गठबंधन ने एक मुसलमान प्रत्याशी को चुनाव में क्यों उतार दिया. ये संकट इसलिए भी बड़ा है. क्योंकि पश्चिमी यूपी को लेकर कहा जाता है कि जिसके जाट, उसके ठाट. लेकिन जाटलैंड में फैलते असंतोष से अखिलेश का सियासी गणित कैसे गड़बड़ हो रहा है?

दिसंबर के पहले हफ्ते में मेरठ में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने एक साथ. एक मंच पर खड़े होकर एकसाथ गदा उठाया था.और सूबे को संकेत दे दिया था कि देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में इस बार बीजेपी का विजय रथ रोकने के लिए सबसे मजबूत गठजोड़ बन चुका है. एक ऐसा गठजोड़ जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो क्लीन स्वीप करेगा ही.पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ी क्षति पहुंचाएगा. और ये ही गणित गठबंधन को अवध की सत्ता में लाएगा. अब जब चुनाव करीब आ चुका है. तब समाजवादी पार्टी की जाटलैंड की सियासत में पेंच फंस गया है. राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जो खिचड़ी पकाई है. वो आरएलडी के नेताओं को ही नहीं पच रही

सपा आरएलडी के गठबंधन में सबसे बड़ी गांठ मांट विधानसभा सीट

सपा आरएलडी के गठबंधन में सबसे बड़ी गांठ बन गई है मथुरा की मांट विधानसभा सीट. 14 जनवरी को आरएलडी ने मांट सीट से योगेश नौहवार को टिकट दिया था. जिसके बाद योगेश नौहवार ने पार्टी टिकट से पर्चा भी भर दिया. लेकिन बुधवार को इस सीट से समाजवादी पार्टी ने संजय लाठर को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया और संजय लाठर ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर पर्चा भी भर दिया. अब सवाल ये है कि अगर साइकिल और हैंडपंप के मालिकों ने हाथ मिला लिया है तो दोनों ही सिंबल चुनाव में कैसे उतर गए. हमारे संवाददाता विपिन चौबे ने मांट के इस गांठ की पूरी पड़ताल की. और हम सबसे पहले यहां से आरएलडी के टिकट पर पर्चा भरने वाले योगेश नौहरवार के पास पहुंचे.

दरअसल मांट से पर्चा दाखिल कर चुके योगेश को उनकी पार्टी ने पर्चा वापस लेने के लिए कह दिया है. लेकिन आरएलडी के ये नेता हैंडपंप उखाड़कर साइकिल के लिए रास्ता बनाने के लिए तैयार नहीं हैं.पार्टी के कैंडिडेट ने खूंटा ठोक दिया है कि अगर खुद जयंत चौधरी चुनाव लड़ें. तब तो वो अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेंगे. लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए कतई बलिदान नहीं देंगे. और इसी नाटकीय मोड़ ने जिला स्तर के पार्टी नेताओं को भी उहापोह में डाल दिया है. आरएलडी के योगेश ये कहकर भी ताल ठोंक रहे हैं कि जब वो बीजेपी की लहर में भी मात्र 432 वोटों से हारे थे तो टिकट पर हक उनका ही बनता है लेकिन अखिलेश यादव से साइकिल का सिंबल लेकर लौटे संजय लाठर ने भी बृहस्पतिवार को पर्चा दाखिल कर दिया. इस उम्मीद के साथ कि ये गुस्सा तात्कालिक है.

पश्चिम यूपी में जाट वोट करीब 17 %

हाईकमान के फैसले के आगे मांट का ये गुस्सा भले ही दब जाए. लेकिन जयंत चौधरी के सामने एक संकट सिवालखास का भी है. मेरठ के सिवालखास के पेंच की पड़ताल टीवी 9 भारतवर्ष के संवाददाता रजनीश रंजन ने की है.दरअसल सीट के बंटवारे में मेरठ का सिवालखास सीट आरएलडी को मिली है. लेकिन यहां से आरएलडी के सिंबल पर समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक गुलाम मोहम्मद को चुनाव में उतारा गया है
अब जाटलैंड की पहली शिकायत ये है कि अगर ये सीट RLD को मिली तो सपा का नेता क्यों चुनाव लड़ रहा है. और दूसरी शिकायत ये कि यहां से जाट को कैंडिडेट बनाने की जगह मुस्लिम को कैंडिडेट क्यों बनाया गया. नाराजगी इतनी कि आरएलडी के पूर्व जिलाध्यक्ष ने इस्तीफा तक दे दिया है. अब मेरठ में पंचायतें हो रही हैं.और ऐलान किया जा रहा है कि चाहे नोटा का बटन दबाना पड़ जाए. लेकिन ना तो पार्टी प्रत्याशी को वोट देंगे ना बीजेपी. जाट समुदाय का ये विरोध पश्चिम में अखिलेश-जयंत गठबंधन का समीकरण बिगाड़ सकता है. क्योंकि उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय भले ही 3 से 4 परसेंट के बीच हो लेकिन पश्चिम यूपी में जाट वोट करीब 17 परसेंट है. ये वोटबैंक विधानसभा की करीब 120 सीटों पर असर रखता है. पश्चिमी यूपी में 30 सीटें ऐसी हैं. जिनपर जाट वोटों को निर्णायक माना जाता है.

पश्चिम यूपी में का जाट गणित क्या होगा?

जाहिर है जाट समुदाय की इस नाराजगी को जयंत चौधरी और अखिलेश यादव नजरअंदाज नहीं कर सकते. फिलहाल पश्चिम यूपी में जाट गणित क्या होगा. ये पूरी तरह से साफ नहीं है. लेकिन समाजवादी पार्टी को बदलते माहौल का डर भी सता रहा होगा. क्योंकि वेस्ट यूपी का चुनावी इतिहास भी कुछ ऐसा ही कह रहा है.जाट वोटों की कीमत क्या होती है.इसे पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भी बताया है. साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय के दम पर बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वेस्ट यूपी की कुल 29 में से 26 सीटें जीती थी. जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली. वेस्ट यूपी में बीजेपी का ये शानदार प्रदर्शन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा. बीजपी को पश्चिमी यूपी की 29 में से 21 सीटों पर जीत मिली थी.बाकी 8 सीटों पर समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन ने जीत हासिल की थी. यानी तब यूपी की दो बड़ी पार्टियों समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने मिलकर बीजेपी का मुकाबला किया था. दरअसल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुस्लिम समीकरण को बड़ा झटका लगा.जिसका दो चुनावों पर असर आप देख चुके हैं.लेकिन ये असर विधानसभा चुनावों में भी दिखा.

साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी और सहयोगियों को वेस्ट यूपी में 108 सीटें मिलीं थी. जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ 29 सीट मिलीं. बीएसपी को 3 और कांग्रेस को 3 सीट से संतोष करना पड़ा था. मोदी लहर से पहले यानि साल 2012 के चुनाव में समीकरण कुछ और था. साल 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वेस्ट यूपी में सिर्फ 16 सीट मिली थी जबकि समाजवादी पार्टी को 52, बीएसपी को 40 और कांग्रेस को 8 सीट मिली थी. जाहिर है 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में जाट समुदाय बीजेपी से दूर था. लेकिन 2017 में इसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट वोटरों का भरपूर समर्थन मिला.नतीजा ये हुआ कि बीजेपी 14 साल का बनवास काटकर प्रचंड बहुमत से यूपी में सत्ता में आई. और ये ही वजह है कि मेरठ, मथुरा और मुजफ्फरनगर एक बार फिर SP-RLD गठबंधन को डरा रहा है.

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Written by rannlabadmin

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