भारतीय रिजर्व बैंक को हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नीतिगत ब्याज दरों में बदलाव करे। तभी आठ अप्रैल को हुई मौद्रिक समीक्षा समिति की दोमासिक बैठक में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। अगली मौद्रिक समीक्षा आठ जून को होनी थी लेकिन उससे पहले चार अप्रैल को रिजर्व बैंक ने आपात बैठक की और रेपो रेट में 0.40 अंक की बढ़ोतरी कर दी। इसके सथ ही केंद्रीय बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर भी बढ़ा दिया। रेपो रेट बढ़ाने से कर्ज महंगा होगा और सीआरआर बढ़ाने से बैंकों के पास नकदी कम होगी, जिससे वे कम कर्ज दे पाएंगे। महंगाई काबू करने के लिए यह कदम उठाया गया है लेकिन सवाल है कि रिजर्व बैंक को यह हिम्मत कहां से आई कि उसने न सिर्फ रेपो रेट बढ़ाया, बल्कि नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर भी बढ़ा दिया?
केंद्रीय बैंक को यह हिम्मत पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दी है। पिछले महीने की मौद्रिक समीक्षा में जब बैंक ने ब्याज दर नहीं बढ़ाई तब रघुराम राजन ने एक इंटरव्यू में रिजर्व बैंक पर निशाना साधा और ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करने के लिए उसकी आलोचना की। रघुराम राजन ने दो टूक अंदाज में कहा कि महंगाई काबू में करने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना कोई देशद्रोह नहीं है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए जरूरी है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी की जाए। 25 अप्रैल को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि एक न एक दिन रिजर्व बैंक को ब्याज दर बढ़ानी ही होगी। इसके पांच दिन बाद अप्रैल का महंगाई का आंकड़ा आया और खुदरा महंगाई सात फीसदी के करीब पहुंच गई। तब रिजर्व बैंक ने हिम्मत जुटाई और दोमासिक समीक्षा बैठक का इंतजार किए बगैर आपात बैठक बुला कर ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी। यह शुरुआत है। आने वाले दिनों में ऐसी और बढ़ोतरी होगी।
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