उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों से पहले अंदाजा लगाया जा रहा था कि अगर भाजपा नहीं जीतती है या उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहता है तो पार्टी के इकलौते बड़े सहयोगी नीतीश कुमार के तेवर बदलेंगे। वे 2020 के विधानसभा चुनाव भाजपा की ओर से पीठ में छुरा भोंके जाने का बदला लेंगे। लेकिन उलटा हो गया। भाजपा उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों का चुनाव जीत गई। इसके बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तेवर दिखा रहे हैं। उन्होंने सोमवार को विधानसभा में जिस अंदाज में स्पीकर विजय सिन्हा को फटकार लगाई, उससे ऐसा लग रहा है कि भाजपा से उनकी दूरी बढ़ रही है।
ध्यान रहे स्पीकर भाजपा के नेता हैं और दूसरी बार के विधायक हैं। नीतीश ने बहाना खोज कर उनको फटकार लगाई। सदन में स्पीकर के ऊपर किसी मुख्यमंत्री के चिल्लाने और डांट-फटकार का यह पहला और ऐतिहासिक उदाहरण है। इसके बाद जनता दल यू और भाजपा के नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई। सोशल मीडिया में दोनों पार्टियों के नेता और समर्थक भिड़ गए। जदयू के नेता भाजपा पर गलत राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं तो भाजपा का आरोप है कि मुख्यमंत्री ने संसदीय गरिमा का सम्मान नहीं किया।
लेकिन यह इकलौता मसला नहीं है, जिससे ऐसा लग रहा हो कि समीकरण बदल सकता है। राज्य सरकार के एक और सहयोगी मुकेश साहनी तेवर दिखा रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश में भाजपा की मर्जी के खिलाफ जाकर विधानसभा का चुनाव लड़े थे और अब बिहार में विधान परिषद के चुनाव में भी सात सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। पहले कहा जा रहा था कि भाजपा की ओर से एक सीट मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी के लिए एक सीट छोड़ी जाएगी और जदयू की ओर से दूसरे सहयोगी जीतन राम मांझी को एक सीट दी जाएगी। लेकिन दोनों सहयोगियों को कोई सीट नहीं मिली।
साहनी का अलग चुनाव लड़ना एनडीए के लिए अच्छा नहीं है। पिछले काफी समय से यह अटकल चल रही है कि साहनी और मांझी पाला बदल कर राजद के साथ जा सकते हैं। इन दोनों के पास सात विधायक हैं। अगर ये साथ छोड़ते हैं तो एनडीए सरकार अल्पमत में आ जाएगी। दूसरी ओर राजद, कांग्रेस के साथ अगर मांझी, साहनी और ओवैसी जुड़ते हैं तो बहुमत का आंकड़ा बनता है। हालांकि इसमें बहुत अगर मगर हैं। संभव है कि एनडीए छोड़ने पर मांझी और साहनी की पार्टी टूट जाए और कुछ विधायक भाजपा व जदयू में चले जाएं। लेकिन अगर जदयू और नीतीश कुमार खुद दूरी बनाते हैं तो अलग बात है। जो हो पांच राज्यों के चुनाव के बाद बिहार की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है। राष्ट्रपति चुनाव तक बिहार में कुछ न कुछ बदलाव जरूर होगा।
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