बिहार विधानसभा में सोमवार को जो हुआ वह अभूतपूर्व था। स्पीकर विजय सिन्हा अपने चुनाव क्षेत्र लखीसराय से जुड़े कानून व्यवस्था के एक मसले पर राज्य सरकार को जवाब देने के लिए बाध्य कर रहे थे। पहले इस पर एक बार चर्चा हो चुकी थी लेकिन सोमवार को फिर यह मुद्दा उठा और जब सरकार संतोषप्रद जवाब नहीं दे सकी तो उन्होंने इस पर चर्चा के लिए दो दिन बाद का समय तय किया। यह कार्यवाही अपने चैंबर में बैठ कर मुख्यमंत्री देख रहे थे। जब इसी मसले पर फिर चर्चा की बात हुई तो वे चैंबर से उठ कर आए और सदन में आते ही स्पीकर पर बरस पड़े। उन्होंने बहुत ऊंची आवाज में स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाया और उनको सदन चलाने का तरीका और संसदीय मर्यादा सिखाई। आसन पर बैठे स्पीकर हकलाते रहे और उनकी पार्टी तमाशा देखती रही।
यह पहला मौका नहीं था, जब स्पीकर की बेचारगी दिखी थी। पिछले साल सदन की कार्यवाही के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य सरकार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी के भाषण के दौरान स्पीकर ने टोका तो वे भड़क गए और स्पीकर को व्याकुल भारत नहीं होने की सलाह दे डाली। सोचें, स्पीकर विजय सिन्हा खुद भाजपा के नेता हैं। लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं की ओर से भी उनको सम्मान नहीं मिलता है और मुख्यमंत्री ने तो पानी ही उतार दिया। असल में उनको स्पीकर बनाए जाने के बाद से ही उन्हें लेकर सवाल उठ रहे थे। उनका राजनीतिक अनुभव भी बहुत लंबा चौड़ा नहीं है और विधानसभा में वे भी दूसरी बार ही जीत कर आए हैं। राजनीतिक कद भी बड़ा नहीं है। तभी ऐसा लग रहा है कि दिखावे के लिए किसी को संवैधानिक महत्व के पद पर बैठाया जाता है तो उसका यहीं हस्र होता है।
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