बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती विधानसभा चुनाव के पहले और चुनाव के दौरान लगभग पूरी तरह से शांत रहीं। उन्होंने साधारण तरीके से भी चुनाव नहीं लड़ा। चुनाव की तैयारियों के लिए उनकी पार्टी ने कोई बड़ी सभा नहीं की। ब्राह्मणों का सम्मेलन जरूर कुछ जगहों पर हुआ और एक सम्मेलन में मायावती भी शामिल हुईं पर वह भी औपचारिकता थी। लेकिन चुनाव नतीजे आने और पार्टी के ऐतिहासिक रूप से खराब प्रदर्शन करने के बाद मायावती अब अचानक सक्रिय हो गई हैं। उन्होंने राजनीतिक बैठकें शुरू कर दी हैं।
पार्टी के जानकार नेताओं का कहना है कि मायावती को अंदाजा था कि इस बार उनके लिए मौका नहीं है और उनकी पार्टी का प्रदर्शन खराब होगा। लेकिन उनको यह अंदाजा नहीं था कि एक चौथाई जाटव भी साथ छोड़ देंगे और दलितों का आधे से ज्यादा हिस्सा दूसरी पार्टियों के साथ चला जाएगा। चुनाव नतीजों के बाद जातियों के वोटिंग पैटर्न का जो डाटा सामने आया है उसके मुताबिक 21 से 25 फीसदी तक जाटवों ने भाजपा को वोट दिया है। भाजपा ने इस वोट के लिए सबसे ज्यादा जोर भी लगाया।
उत्तराखंड की राज्यपाल रहीं बेबी रानी मौर्य को वापस बुला कर पार्टी में सक्रिय किया गया और चुनाव लड़ाया गया। चर्चा है कि वे उप मुख्यमंत्री बन सकती हैं। इसी तरह आईएएस अधिकारी असीम अरुण को वीआरएस दिला कर कानपुर से चुनाव लड़ाया गया। वे जीत गए हैं और उनके भी मंत्री बनने की चर्चा है। बेबी रानी मौर्य और असीम अरुण दोनों जाटव समाज से आते हैं। भाजपा के इस कदम से मायावती की चिंता बढ़ी है और उन्होंने अपना कोर वोट बचाने का प्रयास शुरू कर दिया है।
सबसे पहले उन्होंने लोकसभा में पार्टी का नेता बदला है। मायावती ब्राह्मण वोट की उम्मीद में रितेश पांडेय को अपने 10 लोकसभा सांसदों का नेता बना रखा था। लेकिन अब रितेश पांडेय को हटा कर उनकी जगह गिरीश चंद्र को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया है। वे जाटव समाज से आते हैं। मायावती ने करीब तीन साल में पांचवी बार नेता बदला है। उम्मीद की जा रही है कि अगले लोकसभा चुनाव तक वे नेता नहीं बदलेंगी। मायावती ने अपना कोर दलित वोट बचाने के मकसद से ही मीडिया पर भी हमला किया। उन्होंने मीडिया को जातिवादी बताया और अपनी पार्टी के सारे प्रवक्ताओं को निर्देश दिया कि वे टेलीविजन चैनलों पर होने वाली बहसों में शामिल न हों। बहरहाल, जाटव और व्यापक दलित समाज का वोट बचाने के साथ मायावती एक बार फिर मुस्लिम वोट की राजनीति भी शुरू कर रही हैं ताकि अगले लोकसभा चुनाव में वे भाजपा विरोधी वोटों में हिस्सेदार बन सकें।
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