Publish Date: | Fri, 08 Oct 2021 02:41 PM (IST)
Gwalior News: ग्वालियर, नईदुनिया प्रतिनिधि। नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी का पूजन किया जाता है। जिन्हें तप का आचरण करने वाली देवी माना गया है। मां ब्रह्मचारिणी की आराधन मन से किया जाए तो फल भी अवश्य मिलता है। इसका उदाहरण हैं शहर की पैरास्विमर रजनी झा। जो कड़ी मेहनत और तपस्या की बदौलत अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। रजनी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 105 मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। इनके जीवन का सफर दस साल की उम्र में एक सामान्य से प्रतियोगिता शुरू हुआ। इसमें उन्होंने गोल्ड मेडल प्राप्त किया। हौसले को उड़ान मिली और फिर पलटकर पीछे नहीं देखा। साथ ही जीत को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। बताती हैं उनके साथ-साथ माता-पिता ने भी संघर्ष किया है। पोलियो की वजह से उन्होंने अपने दोनों पैर भले ही ठीक से काम न करते हों, लेकिन कभी भी खुद को हारा हुआ नहीं माना। हमेशा खुद को चुनौतियों से लड़ने के लिए तत्पर रखा। कई बार स्विमिंग के दौरान किसी न किसी कि मदद लेनी पड़ती थी। इस परंपरा को भी उन्होंने ही बदला। रजनी ने बताया कि उनके पिता भैरव कुमार झा पुलिस विभाग में इलेक्ट्रीशियन के पद पर हैं। माता रेखा झा गृहणी हैं। घर की आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं रहती थी। काफी संघर्ष करना पड़ता था। वे कामनवैल्थ ट्रायल में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। नेशनल पैरासैनो चैंपियनशिप 2021 में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। वर्तमान में पैरालिंपिक की तैयारी में जुटी हुई हैं। हर दिन चार से पांच घंटे अभ्यास कर रही हैं।
आटो के पैसे नहीं होते थे तो पैदल जाती थीं ट्रेनिंग के लिएः रजनी कहती हैं उनके पिता की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थीं। उनके इलाज में काफी पैसा लग गया। इस दौरान पिता ने अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए बेटी की ट्रेनिंग जारी रखी। घर में पैसे न होने की वजह से ट्रेनिंग के लिए वे आटो की बजाय पैदल कैलिबर के सहारे सेंट्रल जेल से एलएनआइपी जाती थीं।
लाेगों के तानों से ही सफल हुई: घर से निकलते ही लोग का घूर-घूर कर देखना रजनी को बेहद तकलीफ देता था। वे अक्सर उनके माता पिता से कुछ न कुछ कहते थे, लेकिन पिता ने रजनी से साफ कह दिया वह अपने मन की सुने, किसी की बातों पर ध्यान न दे। पिता कहते थे अपने लक्ष्य के बीच में किसी को नहीं आने देना। लोगों के तानों को अपनी मजबूती बनाना कमजोरी नहीं।
Posted By: vikash.pandey
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