नई दिल्ली। अंग्रेजों के जमाने में बने करीब डेढ़ हजार कानून खत्म कर चुकी केंद्र सरकार स्वतंत्रता की लड़ाई को कुचलने के लिए बनाए गए राजद्रोह कानून को बनाए रखना चाहती है। केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानी राजद्रोह कानून को खत्म करने के पक्ष में नहीं है। केंद्र सरकार ने अदालत से कहा कि इसे खत्म करने की बजाय इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी होना चाहिए।
गौरतलब है कि राजद्रोह कानून खत्म करने के लिए कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। इनके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह पांच मई से इस मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी। सो, उसने गुरुवार को सुनवाई की और अब अगली सुनवाई 10 मई को दोपहर दो बजे होगी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह भी साफ कर दिया था कि वह सुनवाई स्थगित करने वाली किसी याचिका पर विचार नहीं करेगी। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने 27 अप्रैल को इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। बेंच में जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए केंद्र को सोमवार सुबह तक का समय दिया है।
गुरुवार की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राजद्रोह कानून को पूरी तरह हटाया नहीं जाना चाहिए, बल्कि इस पर दिशा-निर्देशों की जरूरत है। अटॉर्नी जनरल ने नवनीत राणा का मामला उठाया और कहा हनुमान चालीसा पढ़ने पर राजद्रोह का केस बनाया गया। ऐसे में अदालत को कानून पर गाइडलाइन बनाने की जरूरत है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं।
इससे पहले 27 अप्रैल को बेंच ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने कहा था, लेकिन गुरुवार को सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल ने और समय मांगा। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि नौ महीने पहले ही इसको लेकर नोटिस दिया था, लेकिन इतने वक्त में भी जवाब दाखिल नहीं हुआ। गौरतलब है कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एक पूर्व मेजर जनरल सहित कई लोगों ने आईपीसी की धारा 124ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दायर की है। इस पर सुनवाई की सहमति देते हुए अदालत ने कहा था कि उसकी सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि कानून का दुरुपयोग हो रहा है, जिसके कारण राजद्रोह के मामले भी बढ़े हैं।
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