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Corona Crisis India is facing a huge epidemic it is not possible to know the exact rate of infection from TPR Said ICMR | भारत भारी महामारी का सामना कर रहा है, TPR से संक्रमण की सटीक दर जानना मुमकिन नहीं: ICMR

अगर हम सोचते हैं कि मास्क पहनने और किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में 15 मिनट से ज्यादा देर तक नहीं रहते हैं तो हमारे बीमार होने के आसार काफी कम हैं तो ओमिक्रॉन वेरिएंट के मामले में ऐसा नहीं है. ताजा मामलों पर गौर करें तो मास्क पहनने और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में महज तीन से पांच मिनट रहने के बाद भी लोग बीमार हो रहे हैं.

भारत भारी महामारी का सामना कर रहा है, TPR से संक्रमण की सटीक दर जानना मुमकिन नहीं: ICMR

भारत भारी महामारी से जूझ रहा है. (फाइल फोटो)

कोरोना के ओमिक्रॉन (Omicron) या डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) से दोबारा संक्रमित होने की आशंका काफी ज्यादा होती है, क्योंकि ये वायरस नाक और गले में पनपता है, जबकि एंटीबॉडीज ब्लड में मौजूद होती हैं. यह कहना है ICMR-नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर इम्प्लिमेंटेशन रिसर्च ऑन नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज (NIIRNCD) के निदेशक डॉ. अरुण कुमार शर्मा का. उन्होंने TV9 को बताया, ‘हमें यह याद रखना चाहिए कि म्यूकोसल इम्यून सिस्टम का एक बड़ा कंपोनेंट है, जो शरीर के अहम अंगों को म्यूकस जैसे इंफेक्शन के खतरे से सुरक्षित रखता है.

गौर करने वाली बात यह है कि SARS-CoV-2 श्वास प्रणाली के ऊपरी हिस्से को संक्रमित करता है, जो रेसप्रिरेटरी म्यूकल सरफेस पर सबसे पहले इम्यून सिस्टम के संपर्क में होता है. हालांकि, कोरोना के मामलों में अधिकतर स्टडीज सीरम एंटीबॉडी पर किए गए. यह हकीकत है कि वैक्सीन गंभीर बीमारी से बचाव करती है, लेकिन सीधे तौर पर होने वाले किसी भी इंफेक्शन से सुरक्षा नहीं करती. उन्होंने कहा कि इंफेक्शन को ध्यान में रखते हुए हमें लगातार कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना होगा. आइए इस रिपोर्ट में उनसे पूछे गए सवालों और उनके जवाबों से रूबरू होते हैं:

सवाल- खासतौर पर मेट्रो सिटीज में अस्पतालों में भर्ती होने वालों की संख्या चिंताजनक है. क्या कोरोना का ओमिक्रॉन वेरिएंट अलग तरह से व्यवहार कर रहा है? अचानक गंभीर मामले क्यों नजर आने लगे हैं?

कोरोना के मामलों में तेजी की वजह से अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इसकी वजह सिर्फ ओमिक्रॉन नहीं है. लोगों के बीच से डेल्टा वेरिएंट पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है इसका मतलब यह है कि लोगों में डेल्टा और ओमिक्रॉन दोनों वैरिएंट का ट्रांसमिशन लगातार हो रहा है. दरअसल, ओमिक्रॉन वेरिएंट के सामने आने के बाद हम डेल्टा वेरिएंट के अस्तित्व की अनदेखी कर रहे हैं. हमारे पास यह जानने का कोई तरीका ही नहीं है कि कोई भी व्यक्ति डेल्टा से संक्रमित हो रहा है या ओमिक्रॉन से. हमें लगता है कि अगर कोई व्यक्ति कोरोना की चपेट में आ गया है और उसमें डेल्टा की पुष्टि नहीं हो रही, तो वह ओमिक्रॉन से संक्रमित है.


मरीजों को लगता है कि ओमिक्रॉन कोरोना संक्रमण का कमजोर रूप है, जिसका असर तीन से पांच दिन में खत्म हो जाएगा और वे ठीक हो जाएंगे. इसी वजह से डेल्टा वेरिएंट की चपेट में आए लोगों ने शुरुआत में सावधानी नहीं बरती और न ही दवा ली. इसके चलते वे गंभीर रूप से बीमार हो गए. कुछ क्षेत्रों के अस्पतालों में मरीजों की संख्या में इजाफा होने का एक कारण यह भी हो सकता है.


दूसरी संभावना यह है कि भले ही कोरोना का ओमिक्रॉन वेरिएंट कमजोर माना जा रहा है. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि ओमिक्रॉन से संक्रमित सभी मामले हल्के होंगे, इसका एक छोटा-सा हिस्सा गंभीर रूप से भी बीमार कर सकता है.

दरअसल, ये सभी परिदृश्य कल्पना के आधार पर तैयार किए जा रहे हैं, क्योंकि हमारे पास सटीक आंकड़े नहीं हैं. किसी ने अभी तक अस्पताल में भर्ती मरीजों की जांच करके यह पता नहीं लगाया कि क्या वे डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित हैं या गंभीरता अचानक क्यों बढ़ गई? हम नहीं जानते कि गंभीर रूप से बीमार लोगों और बुजुर्गों के साथ ओमिक्रॉन वैरिएंट कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है? यह भी हो सकता है कि यह कोई नया सब-वेरिएंट हो, जो हमने अभी तक नहीं देखा है.

सवाल- हालात को देखते हुए टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (TPR) और केस फेटेलिटी रेट (CFR) में से कौन ज्यादा बेहतर सूचक है, जिससे यह पता लग सके कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के प्रति कितना गंभीर होने की जरूरत है?

एपिडेमियोलॉजिकल इंडिकेटर्स के रूप में दोनों बेहद अहम हैं और इनसे अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति होती है. यही वजह है कि हम स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकते हैं कि इनमें से कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है. CFR एक ऐसा इंडिकेटर है, जिससे पता लगता है कि बीमारी कितनी गंभीर है या वायरस कितना घातक है. यदि काफी ज्यादा लोगों की मौत हो रही है तो इसका मतलब है कि संक्रमण फेफड़ों में पहुंच रहा है, जिससे शरीर में कई बदलाव हो रहे हैं. इसकी वजह से मौतों की संख्या बढ़ जाती है, जैसे कि हमने दूसरी लहर में डेल्टा वेरिएंट का कहर देखा. दूसरी तरफ, पॉजिटिविटी रेट का मतलब है कि हम जितने सैंपल की जांच कर रहे हैं, उनमें अनुपातिक रूप से 50 या 70 फीसदी से अधिक लोग संक्रमित पाए गए.


हम जांच के लिए रैंडम तरीके से लोगों के सैंपल नहीं ले रहे हैं. ऐसे में इसे पूरी आबादी की पॉजिटिविटी रेट के रूप में नहीं देखा जा सकता है. दरअसल, कोरोना की वर्तमान लहर के दौरान वही लोग अपनी जांच करा रहे हैं, जिन्हें कोविड के कुछ लक्षण महसूस हुए या जो कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आए. इसका मतलब है कि यह सैंपल लेने का एकतरफा तरीका है. इसे पूरी जनसंख्या का रैंडम सैंपल नहीं माना जा सकता है. इसलिए जाहिर है कि लक्षण या शिकायत के बाद गए सैंपलों में लोगों के संक्रमित होने के आसार काफी ज्यादा होंगे. ऐसे में इन सैंपलों का TPR निश्चित रूप से ज्यादा होगा, लेकिन इससे पूरी आबादी के सटीक पॉजिटिविटी रेट का पता कभी नहीं चलेगा.


इसी दौरान हम यह भी कह रहे हैं कि सभी लोगों को टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है. हम जानते हैं कि अधिकांश लोग संक्रमित हो जाएंगे, लेकिन वे तीन-चार दिन में ठीक हो जाएंगे और उन्हें कोई गंभीर लक्षण भी महसूस नहीं होगा. ऐसे में कोरोना की जांच कराने का मतलब क्या है? सिर्फ कोरोना की जांच करने से संक्रमण का प्रसार नहीं रुकेगा. चाहे कोई कोरोना की चपेट में आए या नहीं, उसे कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना ही होगा. साथ ही, तमाम एहतियात भी बरतनी होंगी. ऐसे में मेरा मानना है कि कोरोना की जांच करना सिर्फ संसाधनों की बर्बादी है और इससे कोई फायदा नहीं होगा.

सवाल- कोरोना की जांच न करने पर संक्रमण का पता कैसे लगेगा? क्या हमें यह पता लग पाएगा कि कोरोना की वैक्सीन डेल्टा या ओमिक्रॉन दोनों के खिलाफ काम करती है या नहीं?

यदि कोई शख्स एक बार ओमिक्रॉन या डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित हो गया है तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वह दोबारा संक्रमित नहीं होगा. मरीज बार-बार संक्रमण की चपेट में आएंगे. दरअसल, एंटीबॉडी ब्लड में काम कर रहे हैं, लेकिन वायरस नाक और गले में रहता है, जहां एंटीबॉडी नहीं हैं. ऐसे में लोगों के बार-बार संक्रमित होने का खतरा बना रहेगा. हम इस बात से संतुष्ट नहीं हो सकते कि अगर हम एक बार संक्रमित हो गए तो हमारे अंदर नेचुरल इम्युनिटी तैयार हो गई है और हम दोबारा संक्रमण की चपेट में नहीं आएंगे. दरअसल, नेचुरल इम्युनिटी आपको गंभीर संक्रमण से सुरक्षित रखती है, लेकिन यह आपको रोगों के प्रति संवेदनशील भी बना देती है. ऐसे में संक्रमण की स्थिति पर ध्यान दिए बिना कोविड अनुरूप व्यवहार जारी रखना चाहिए.

सवाल- ICMR की गाइडलाइंस भी तेजी से बदल रही हैं. इसकी वजह क्या है? क्या हम अब भी वायरस पर स्टडी कर रहे हैं या अब भी अटकलें ही लग रही हैं?

महामारी की शुरुआत में हमें वायरस के बारे जितना पता था, आज की तारीख में हम उससे काफी ज्यादा जानते हैं, लेकिन अब भी काफी कुछ जानना बाकी है. ICMR ने हमेशा कहा है कि जब हम इस तरह की महामारी से जूझते हैं, तब कम्युनिटी ट्रांसमिशन काफी तेज हो जाता है और कई बार वायरस का नया वेरिएंट काफी घातक हो जाता है. ऐसी स्थिति में पुराने नियम किसी काम के नहीं रहते. अगर हम सोचते हैं कि मास्क पहनने और किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में 15 मिनट से ज्यादा देर तक नहीं रहते हैं तो हमारे बीमार होने के आसार काफी कम हैं तो ओमिक्रॉन वेरिएंट के मामले में ऐसा नहीं है. ताजा मामलों पर गौर करें तो मास्क पहनने और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में महज तीन से पांच मिनट रहने के बाद भी लोग बीमार हो रहे हैं. इसका मतलब साफतौर पर इतना है कि इस बार केस लोड बहुत ज्यादा रहेगा.


हम अपनी जानकारी और स्टडी के हिसाब से अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास कर रहे हैं. हम कोरोना जांच और जीनोम सीक्वेंसिंग की तादाद बढ़ा नहीं सकते, क्योंकि आखिर में इलाज का तरीका एक जैसा ही रहेगा. अब कोरोना के मामलों की सटीक संख्या खोजने और बारीकियों के साथ उसका विश्लेषण करने से महामारी का कारण जानने में मदद नहीं मिलेगी.


एक बड़ी आबादी में जब हमें काफी ज्यादा संक्रमितों के मिलने का अनुमान हो तो वैज्ञानिक रूप से हर किसी की जांच करना जरूरी नहीं है. इस वजह से स्क्रीनिंग के तरीके बदल दिए गए हैं. अब हम प्रतीकात्मक तौर पर सैंपल की जांच करते हैं और उसके आधार पर अनुमान लगाते हैं कि क्या हो रहा है. इसके मद्देनजर ही ICMR ने टेस्टिंग पॉलिसी, होम आइसोलेशन और इलाज के संबंध में नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं.

सवाल- कुछ इलाकों में कोरोना संक्रमण का ग्राफ सपाट दिख रहा है, जबकि दूसरे क्षेत्रों में संक्रमण काफी तेजी से फैल रहा है. इसके पीछे क्या कारण है?

हां, हम देख रहे हैं कि मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में मामले घटने लगे हैं. यानी इन शहरों में संक्रमण की यह लहर अब नीचे की ओर है. भारत काफी बड़ा देश है. ऐसे में हम पूरे देश में एक साथ पीक आने का अनुमान नहीं लगा सकते हैं. अलग-अलग इलाकों में पीक अलग-अलग वक्त पर आएगा. उदाहरण के लिए जोधपुर में इस वक्त मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. दूसरे छोटे शहरों में भी अगले हफ्ते से मामले बढ़ते नजर आएंगे. यह महामारी काफी भयानक हो सकती है.

सवाल- सीक्वेंसिंग के अभाव में हम देश में ओमिक्रॉन के मामलों की सटीक संख्या कभी नहीं जान पाएंगे. क्या भारत में भी दक्षिण अफ्रीका जैसे हालात बनेंगे, जहां कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़े थे और अचानक घट गए?

मीडिया में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, देश में इस वक्त नौ हजार से ज्यादा ओमिक्रॉन के मामले हैं. हालांकि, यह आंकड़ा गुमराह करने वाला है, क्योंकि जहां जीनोम सीक्वेंसिंग की गई, वहां से इस तरह का डेटा सामने आया. इसमें ओमिक्रॉन संक्रमित मरीजों का रिकॉर्ड भी शामिल है. लेकिन हम आपको बता सकते हैं कि पूरे देश में ओमिक्रॉन के संक्रमण के मामले इससे 30 गुना ज्यादा हैं, लेकिन वे कहां हैं, यह हमें नहीं पता, क्योंकि जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं की गई है.

हमारी स्थिति की तुलना उस हालात से नहीं की जा सकती जो दक्षिण अफ्रीका में हुआ, क्योंकि यह सोचना नामुमकिन है कि भारत में अफ्रीका की तरह कोरोना के मामलों में एक साथ उछाल आएगा और एकाएक मामले खत्म हो जाएंगे. हम यह अनुमान कभी नहीं लगा पाएंगे कि देश के किस हिस्से में कोरोना के मामले पीक पर होंगे, क्योंकि इसके पीछे कई फैक्टर होते हैं. यह सिर्फ परीक्षण क्षमता पर नहीं, बल्कि लोगों के व्यवहार पर भी निर्भर करता है. उदाहरण के लिए जिन इलाकों में ज्यादा आबादी नहीं है, वहां लोग कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करते हैं तो हो सकता है कि वहां संक्रमण पीक पर जाएगा ही नहीं. वहीं, ज्यादा आबादी वाले इलाकों में लोग कोविड अनुरूप दिशानिर्देशों का पालन नहीं करते हैं तो पीक काफी तेजी से आएगा और उतनी ही तेजी से चला भी जाएगा, क्योंकि अधिकांश लोग संक्रमित होंगे और ठीक हो जाएंगे. यही वजह है कि भारत में कोरोना का पीक और उसके खत्म होने का समय तय करना नामुमकिन है, जैसा कि दक्षिण अफ्रीका में बेहद आसानी से हो गया.

सवाल- हमने आबादी एक हिस्से को कोरोना वैक्सीन की एहतियाती डोज लगानी शुरू कर दी है. क्या आपको लगता है कि यह सही तरीका है?

बूस्टर टीके ताउम्र इम्युनिटी नहीं दे सकते हैं. वैक्सीन की प्राइमरी डोज के बाद हमने इम्युनिटी लेवल में गिरावट देखी. खासतौर पर वायरस के खिलाफ इम्युनोग्लोबुलिन का लेवल करीब 8-9 महीने के दौरान घट गया. ऐसे में माना जा रहा है कि एक बूस्टर शॉट से हमारा इम्यून सिस्टम बेहतर तरीके से महामारी का मुकाबला कर पाएगा. आखिर में ऐसा हो सकता है कि SARS CoV-2 भी फ्लू जैसी बीमारी बन जाए, जिससे बचने के लिए हमें हर साल एक टीका लगवाना पड़े.

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Written by rannlabadmin

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