राहुल गांधी और चिदंबरम दोनों की इन बातों से अनुमान लगाएं, तो कहा जा सकता है कि समस्या क्या है, कांग्रेस इसे समझने की कोशिश कर रही है। लेकिन समाधान क्या है, इस बिंदु पर आकर वह शून्यता की शिकार है।
लंदन में हुए डायलॉग में राहुल गांधी 2012 का एक किस्सा सुनाया। कहा कि देश में बढ़ती आर्थिक मुश्किलों के बीच वे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने गए। तो डा. सिंह ने उनसे कहा कि 1991 में आर्थिक सुधार लागू होने के बाद वृद्धि के जो उत्तोलक (लीवर) सक्रिय हुए थे, अचानक उन्होंने काम करना बंद कर दिया है। यानी डा. सिंह ने खुद माना कि जिन आर्थिक सुधारों का श्रेय उन्हें दिया जाता है, वे गतिरुद्ध हो गए हैँ। राहुल गांधी के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने यह गलती कि वे उन्हीं सुधारों को आगे खींचते चले गए हैँ। इसके बावजूद राहुल गांधी ने कहा कि मनमोहन सिंह के विचारों में ही आज की आर्थिक समस्याओं का समाधान है। अब बात को कुछ आगे बढ़ाते हैं। समझा जाता है कि आज भी कांग्रेस की आर्थिक नीति की कमान डॉ. सिंह के बाद पी चिदंबरम के पास है।
चिदंबरम ने रविवार को एक अंग्रेजी अखबार के अपने कॉलम में आर्थिक दिशा की चर्चा की। उसमें उन्होंने उपलब्धियों का जिक्र किया, जो 1991 में अपनाई गई नीतियों से हासिल हुईं। लेकिन साथ ही उन्होंने उन समस्याओं का भी उल्लेख किया है, जो पिछले तीन दशक में बढ़ती गई हैँ। उसके बाद उन्होंने कहा है कि 1991 में पीवी नरसिंह राव-मनमोहन सिंह के अद्भुत साहस दिखाया था। आज भी वैसे ही साहस की जरूरत है, जिसने आर्थिक नीतियों को री-सेट (पुनर्निर्धारित) किया जा सके। और इस बिंदु पर आकर चिदंबरम ने अपना लेख समाप्त कर दिया है। यानी उन्होंने यह नहीं बताया कि री-सेट का स्वरूप क्या होगा और उसके पहलू क्या होंगे? एक शब्द में कहें, तो आर्थिक वृद्धि के नए उत्तोलक क्या होंगे? राहुल गांधी और चिदंबरम दोनों की इन बातों से अनुमान लगाएं, तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस समस्या क्या है, इसे समझने की कोशिश कर रही है। लेकिन समाधान क्या है, इस बिंदु पर आकर वह शून्यता की शिकार है। क्या इसकी वजह कांग्रेस नेतृत्व का वर्ग चरित्र है? या उसके पास बौद्धिक पूंजी की कमी है? बहरहाल, यह तय है कि जब तक इस बिंदु पर कांग्रेस के अंदर स्पष्टता नहीं बनेगी, उसके नेता अंतर्विरोधी बातें कहते रहेंगे और उससे जनता भ्रमित होती रहेगी।
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