in

Congress political crisis बहस या महज भड़ास?

कांग्रेस पुनर्जीवन की गुंजाइश अभी भी बनी हुई है। लेकिन नेतृत्व और विचार के प्रश्नों को अधर में छोड़ कर पुनर्जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती। फिर एक और अहम बात यह है कि पुनर्जीवन तब होता है, जब जीने की इच्छा हो। बीते आठ साल से कांग्रेस में इस इच्छा का ही अभाव दिखा है। Congress political crisis

हाल के पांच राज्यों के चुनाव में दुर्गति के बाद कांग्रेस में एक बहस छिड़ी है। इसमें तीन धाराएं साफ पहचानी जा सकती हैं। अभी भी सबसे बड़ा समूह तो उन्हीं नेताओं का है, जो यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं चाहते। तो इसे जारी रखने के लिए उन्होंने चिंतन शिविर की आड़ ली है। बहरहाल, अगर चिंतन शिविर में कांग्रेस सचमुच चिंतन करना चाहती है, तो उसके सामने तय करने के जो दो सबसे अहम प्रश्न खड़े हैं, उन्हें खुद उनके ही दो नेताओं ने उठा दिया है। पहले कपिल सिब्बल ने सार्वजनिक रूप से वैसी बातें कहीं, जैसी दशकों से कांग्रेस में रहते हुए किसी नेता ने नहीं कही थीं। उन्होंने कांग्रेस की बदहाली का सारा दोष पार्टी नेतृत्व पर डाला। उनकी बातों का सार यह है कि गांधी परिवार परिदृश्य से हट जाए और कोई अन्य नेता कमान संभाल लें, भले खुद उसका विचार, निष्ठा और जनाधार संदिग्ध हो। सिब्बल की इस सोच का जवाब सलमान खुर्शीद ने दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की समस्या नेता नहीं, बल्कि विचार है। पार्टी आज किस विचार के लिए खड़ी है, यह खुद पार्टी नेताओं को भी नहीं मालूम नहीं है। पार्टी के अंदर समाजवाद से पूंजीवाद तक और धर्मनिरपेक्षता से सॉफ्ट हिंदुत्व तक की वकालत करने वाले धड़े हैं। तो चिंतन शिविर सार्थक रहेगा, अगर कांग्रेस इसकी पहचान कर सके कि उसकी समस्या नेता की अक्षमताएं हैं या विचार का अभाव।

Read also हिजाब और उस पर प्रतिबंध ?

अगर एक बार बीमारी की पहचान हो जाए, तो फिर इलाज की शुरुआत हो सकती है। ऐतिहासिक और सांदर्भिक दृष्टि से अगर देखा जाए, तो सिब्बल की बातें किसी सोच से ज्यादा मन की भड़ास ज्यादा महसूस होती हैं। जबकि खुर्शीद ने समस्या की रग पर अंगुली रखी है। बहहाल, इस सिलसिले में चुनाव मैनेजर प्रशांत किशोर की यह बात पर भी संभवतः कांग्रेस के लिए महत्त्वपूर्ण है कि भारत में जब तक लोकतंत्र रहेगा, कांग्रेस जैसी पार्टी की प्रासंगिकता बनी रहेगी। यानी कांग्रेस पुनर्जीवन की गुंजाइश अभी भी बनी हुई है। लेकिन नेतृत्व और विचार के प्रश्नों को अधर में छोड़ कर पुनर्जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती। फिर एक और अहम बात यह है कि पुनर्जीवन तब होता है, जब जीने की इच्छा हो। बीते आठ साल से कांग्रेस में इस इच्छा का ही अभाव दिखा है। अब देखने की बात है कि अब छिड़ी बहस कोई ठोस रूप लेती है, यह एक वक्ती प्रलाप बन कर रह जाती है। Congress political crisis

India

What do you think?

Written by rannlabadmin

Leave a Reply

Your email address will not be published.

GIPHY App Key not set. Please check settings

50+ एक्सपर्ट मेकअप टिप्स और ट्रिक्स, जो मिनटों में देंगे आपको ग्लैमरस लुक(50+ Expert Makeup Tip And Tricks, That Will Give You Instant Glamorous Look)

hijab controversy karnataka घुटने से फटी पैंट सही या हिजाब….?