कांग्रेस पार्टी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारी है। इसके बावजूद राज्यों में पार्टी की खींचतान खत्म नहीं हो रही है और न पार्टी का संकट खत्म हो रहा है। दो राज्यों- उत्तर प्रदेश और मणिपुर में कांग्रेस के सामने ज्यादा संकट नहीं है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक जीते हैं, जिनमें से एक आराधना मिश्र भी हैं, जो पिछली विधानसभा में पार्टी की नेता थीं। इसलिए उन्हें चुनने में कोई दिक्कत नहीं है और मणिपुर में पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह के नेतृत्व में लड़ी थी इसलिए वहां भी नेता चुनने का संकट नहीं है। गोवा में भी अगर पार्टी ज्यादा उलटफेर के बारे में नहीं सोचे तो दिगंबर कामत को नेता बनाया जा सकता है। वे पिछली विधानसभा में भी पार्टी विधायक दल के नेता थे।
असली संकट उत्तराखंड और पंजाब में है। दोनों राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है और नेता विपक्ष बनने के लिए नेताओं की कतार लगी है। पंजाब में कांग्रेस के अनेक बड़े नेता हार गए हैं। कैप्टेन अमरिंदर सिंह पार्टी से बाहर हैं और सुनील जाखड़ ने चुनाव नहीं लड़ा था। चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू चुनाव हार गए। उसके बाद नेता विपक्ष की रेस तीन नेताओं के बीच आ गई है। पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा, पूर्व सांसद प्रताप सिंह बाजवा और युवा नेता राजा अमरिंदर वडिंग का नाम चर्चा में है। वडिंग और बाजवा दोनों को राहुल का करीबी माना जाता है। इस बीच सुनील जाखड़ ने विधायक दल का नेता चुनने के लिए चुनाव कराने की मांग की है।
इसी तरह उत्तराखंड में भी पार्टी के पास मजबूत नेता की कमी है। मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदार हरीश रावत चुनाव हार गए हैं। उनकी बेटी अनुपमा रावत जीती है लेकिन वे पहली बार की विधायक हैं। इसी तरह भाजपा से कांग्रेस में लौटे हरक सिंह रावत चुनाव नहीं लड़े थे और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भाजपा से जीते हैं। यशपाल आर्य जरूर चुनाव जीत गए हैं लेकिन वे भी चुनाव से कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में वापस लौटे हैं। इसलिए कांग्रेस को मजबूत नेता चुनने में दिक्कत आ रही है।
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