केंद्रीय एजेंसी सीबीआई ने शुक्रवार को लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और उनकी दो बेटियों सहित कुल 15 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और दिल्ली, पटना, छपरा सहित कुल 16 जगहों पर छापेमारी की। यह मामला 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहने के समय का है। एजेंसी का कहना है कि उस समय रेलवे में ग्रुप ‘डी’ की भर्ती के बदले में लालू प्रसाद ने अपने परिवार के लोगों के नाम से जमीनें ली। एजेंसी का कहना है कि कुल एक लाख पांच हजार वर्ग फीट जमीन अलग अलग लोगों ने दी है।
इस छापे की टाइमिंग हैरान करने वाली है। तभी ऐसा लग रहा है कि पिछले कुछ दिनों से बिहार में चल रही राजनीतिक गतिविधियों का भी इसमें कुछ न कुछ रोल है। जुलाई 2017 में राजद का साथ छोड़ने के बाद पहली बार पिछले महीने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राबड़ी देवी के आवास पर हुई इफ्तार दावत में शिरकत की। उसके बाद नीतीश की पार्टी की इफ्तार दावत में तेजस्वी शामिल हुए। उसके बाद जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी ने नीतीश से मुलाकात की। दोनों के बीच बंद कमरे में बात हुई। नीतीश के आश्वासन पर तेजस्वी ने अपना आंदोलन रोक दिया। उसके एक हफ्ते में लालू परिवार के यहां छापा पड़ गया।
इस पूरे घटनाक्रम में खबर आई थी लालू प्रसाद के पटना लौटने पर दोनों पार्टियों में फिर तालमेल हो सकता है। अगले महीने 11 जून को लालू प्रसाद का जन्मदिन है, जिसे बड़े पैमाने पर मनाने की तैयारी है। इसके लिए वे पटना जाएंगे और वहां नीतीश के साथ उनकी मुलाकात होने वाली है। दूसरी ओर भाजपा से नजदीकी दिखा रहे अपनी पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह से नीतीश की दूरी बढ़ी है और इस बार उनकी राज्यसभा सीट पर खतरा दिख रहा है। ऐसे समय में लालू परिवार के ऊपर छापे का सीधा राजनीतिक कनेक्शन दिख रहा है। लेकिन अगर राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो गई है तो ऐसे छापों से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा।
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