किसी की उम्र का पता लगाना, उनके जन्म के साल को जानना आसान है लेकिन किसी वस्तु या पौधों, मृत जानवरों या जीवाश्म अवशेषों के बारे में जानना मुश्किल है. सालों साल बाद कार्बन डेटिंग से इस तथ्य तक पहुंचा जाता है.
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के विवादित स्थल ही नहीं बल्कि पूरे परिसर के सर्वेक्षण वाली याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. कोर्ट इस मामले में अब 22 मई को सुनवाई करेगा. इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating of Shivling) और साइंटिफिक सर्वेक्षण कराने की बात कही थी. इसका क्या है तरीका?
वकील विष्णु शंकर जैन ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से सर्वे की गुहार लगाई है. दरअसल हिंदू पक्ष ने पूरे ज्ञानवापी परिसर की आर्कियोलॉजिस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) से सर्वे और कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी. वकील ने यह भी कहा है कि अगर विवादित स्थल के नीचे कुछ मिलता है तो खुदाई की इजाजत देनी चाहिए.
कार्बन डेटिंग क्या है?
कार्बन डेटिंग से कार्बनिक पदार्थों की आयु निकाली जाती है. यह एक प्रकार की वैज्ञानिक विधि है, जिसके जरिए किसी पुरानी वस्तु की आयु निर्धारित की जाती है. इससे उन प्राचीन वस्तुओं का काल निर्धारण होता है जो कभी जीवित थी. मसलन बाल, कंकाल, चमड़ी आदि. इसके सर्वे से पता चलता है कि ये कितने साल पहले जीवित थीं.
दरअसल किसी भी सजीव वस्तु पर कालांतर मेंं कार्बन जमा हो जाता है. वक्त बीतने के साथ ही साल दर साल उस वस्तु पर कार्बनिक अवशेष परत दर परत जमा होते जाते हैं.
जानकारी के मुताबिक कार्बन डेटिंग से करीब 50 हजार साल पुराने किसी अवशेष के बारे में पता लगाया जा सकता है. बाल, कंकाल, चमड़ी के अलावा ईंट और पत्थरों की भी कार्बन डेटिंग होती है. इस विधि से उनकी आयु का भी पता लगाया जा सकता है.
कैसे होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जो कार्बन-14 (C-14) आइसोटोप के द्वारा आयु निर्धारण करने के लिए प्रयुक्त होती है. इस तकनीक का उपयोग करते हुए, पुराने जीवाश्मों, पौधों, वनस्पतियों और अन्य कार्बनिक पदार्थों की उम्र का अनुमान लगाया जा सकता है। कार्बन-14 एक आइसोटोप है जो प्राकृतिक रूप से वातावरण में मौजूद होता है। वायुमंडल में धारित कार्बन द्वारा, जीवित प्राणियों और पौधों द्वारा विशेषकर उच्च पादपों द्वारा वातावरण से कार्बन अवशोषित किया जाता है। जब एक प्राणी मरता है या एक पौधा मर जाता है, तो कार्बन-14 का अवशेष धारित रहता है और उसका स्तर समय के साथ कम होता है।
कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:
- संग्रहीत पदार्थ की तैयारी: संग्रहीत पदार्थ (जैसे जीवाश्म, पौधे, वृक्ष, या अन्य कार्बनिक सामग्री) को वैज्ञानिक अध्ययन के लिए चुना जाता है।
- नमूना लेना: पदार्थ के एक छोटे से टुकड़े को नमूना के रूप में लिया जाता है। इसमें सावधानीपूर्वक ध्यान दिया जाता है कि किसी भी बाह्य कार्बन स्रोत से तार न लगे।
- नमूना के तत्वों की तैयारी: नमूना को प्राथमिक रूप से तत्वों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से एक कार्बन होता है। इसे उबालकर, जलाकर, या अन्य विधियों से प्रस्तुत किया जा सकता है।
- कार्बन-14 के स्तर का मापन: तत्व को ध्यान से साफ़ पानी और रासायनिक औज़ारों के साथ तैयार करके, कार्बन-14 के स्तर का मापन किया जाता है।
- आयु निर्धारण: कार्बन-14 के स्तर के आधार पर, पदार्थ की आयु निर्धारित की जाती है। इसके लिए, वैज्ञानिक तकनीकों और आयामों का उपयोग किया जाता है।
कार्बन डेटिंग का अध्ययन पुरातत्व, जीवविज्ञान, जीवविज्ञान, भूविज्ञान, आदि में उपयोगी है। यह हमें पुरानी संस्कृति, ऐतिहासिक घटनाओं, जीव-प्रजातियों के विकास और वातावरणीय परिवर्तनों के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करता है।
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