पिछले करीब दशक से ज्यादा समय की राजनीति में उत्तर प्रदेश में जिस तरह मुलायम सिंह और मायावती का चेहरा सबसे जाना-माना रहा उसी तरह दिल्ली में उत्तर प्रदेश के चेहरे के तौर पर दो लोग सबसे लोकप्रिय रहे। समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्र। रामगोपाल यादव तो दो साल पहले ही फिर से राज्यसभा के सदस्य बने हैं और उनका कार्यकाल 2026 तक है। उसके बाद भी उनकी पार्टी के इतने विधायक जीते हैं कि उनको राज्यसभा पहुंचने में दिक्कत नहीं होगी। लेकिन सतीश चंद्र मिश्र का क्या होगा? उनकी राज्यसभा इस साल जुलाई में खत्म हो रही है।
तभी कहा जा रहा है कि मायावती से ज्यादा बड़ा झटका सतीश चंद्र मिश्र को लगा है। मायावती को पहले से पता था कि इस चुनाव में वे मुख्यमंत्री नहीं बनने जा रही हैं। लेकिन उनको और सतीश चंद्र मिश्र दोनों को अंदाजा था कि इतनी सीटें मिल जाएंगी, जिससे कम से कम एक राज्यसभा बनाया जा सके। लेकिन बसपा को सिर्फ एक सीट मिली। सो, इस साल चार जुलाई को रिटायर हो रहे सतीश मिश्र को मायावती कहीं से भी राज्यसभा में नहीं भेज पाएंगी। तभी यह सवाल भी है कि मायावती की ब्राह्मण राजनीति का क्या होगा? उन्होंने लोकसभा में पार्टी के ब्राह्मण नेता रितेश पांडेय को हटा दिया और राज्यसभा के नेता सतीश चंद्र मिश्र रिटायर हो जाएंगे। संगठन में तो वे रहेंगे लेकिन ऐसा लग रहा है कि मायावती ब्राह्मण वोट की उम्मीद छोड़ कर आगे की राजनीति करेंगी।
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