डॉ. सिंगला ने बताया कि हमारे देश में प्रतिवर्ष स्तन कैंसर के करीब दस लाख मामले सामने आते हैं। इससे जहां महिलाओं का शारीरिक सौन्दर्य प्रभावित होता है वहीं यह लाइफ थ्रेटनिंग भी है। शुरूआती स्टेज में इसका पता चलने से बचने के चांस बढ़ जाते हैं। इसके मरीज बिना इलाज 5 वर्ष तक ही सर्वाइव कर पाते हैं।
हाल में दिल्ली के जाने-माने प्लास्टिक सर्जन डॉ. साहिल सिंगला से स्तन ऑग्यूमेन्टेशन के सम्बन्ध में बात करते समय पता चला कि उन महिलाओं में स्तन कैंसर (स्तन कैंसर) का रिस्क अधिक होता है जिनकी स्तन हैवी हो। इसका इलाज कीमोथेरेपी के साथ सर्जरी से स्तन रिमूव करके होता है। रिमूव किये स्तन के स्थान पर प्लास्टिक सर्जन सिलीकॉन प्रोस्थेटिक इम्प्लांट करते हैं। डॉ. सिंगला ने बताया कि हमारे देश में प्रतिवर्ष स्तन कैंसर के करीब दस लाख मामले सामने आते हैं। इससे जहां महिलाओं का शारीरिक सौन्दर्य प्रभावित होता है वहीं यह लाइफ थ्रेटनिंग भी है। शुरूआती स्टेज में इसका पता चलने से बचने के चांस बढ़ जाते हैं। इसके मरीज बिना इलाज 5 वर्ष तक ही सर्वाइव कर पाते हैं। इस बीमारी की असलियत जानने हेतु जब स्तन कैंसर विषेषज्ञों से सम्पर्क किया तो पता चला-
कैंसर में हमारे शरीर का विकास करने वाली कोशिकाओं के विभाजन की प्रक्रिया अनियन्त्रित होने से बनी कोशिकायें शरीर के सामान्य स्वस्थ टिश्यू (ऊतक) में घुसपैठ करके उन्हें नष्ट करने लगती हैं। ये टिश्यू पूरे शरीर में कहीं भी हो सकते हैं इसीलिये कैंसर अक्सर पूरे शरीर में फैल जाता है। कैंसर का नामकरण शरीर के इन्हीं हिस्सों या अंगो के मुताबिक होता है। जब ये स्तन में फैलता है तो इसे स्तन कैंसर कहते हैं। आज कैंसर दुनिया में मौत का दूसरा (पहला दिल से जुड़ी बीमारियों को माना जाता है) सबसे बड़ा कारण है। कुछ समय पहले तक इसे लाइलाज माना जाता था लेकिन समय पर यदि इसका पता चल जाये तो व्यक्ति को मरने से बचाया जा सकता है।
स्तन कैंसर, शरीर के स्तन सेल्स में पनपकर, इसके लॉब्यूल्स और डक्ट को शिकार बनाता है। स्तन में लॉब्यूल वह ग्रन्थि होती है जो दुग्ध उत्पादन करती है तथा डक्ट वह रास्ता है जिससे दुग्ध, लॉब्यूल ग्रन्थि से निकलकर निपल तक आता है। बहुत से मामलों में स्तन के फैटी टिश्यू (फाइब्रस कनेक्टिंग टिश्यू) भी स्तन कैंसर का शिकार होते हैं।
कई बार स्तन कैंसर के सेल्स ट्रैवल करते हुऐ बाजुओं के लिम्फ नोड तक पहुंच जाते हैं, इसमें खतरे की बात यह है कि लिम्फ नोड्स ही वह रास्ता है जहां से कैंसर सेल्स शरीर के अन्य भागों में फैलते हैं। ऐसा जरूरी नहीं कि स्तन कैंसर केवल महिलाओं को ही होता है, यह पुरूषों में भी पनपता है।
क्या लक्षण उभरते हैं?
इसकी शुरूआत स्तन में छोटी गांठ (लम्प/ट्यूमर) बनने से होती है, ये एक से ज्यादा हो सकती हैं। ऐसी सभी गांठें (लम्प), कैंसरस हों यह जरूरी नहीं है। ज्यादातर मामलों में ये गाठें (लम्प), बिनाइन (कैंसर रहित) होती हैं।
स्तन कैंसर के लक्षण उसके प्रकार पर निर्भर हैं लेकिन कुछ ऐसे हैं जो सभी तरह के स्तन कैंसर में कॉमन हैं, जैसेकि- स्तन में गांठ (लम्प) और दर्द, स्तन स्किन में लालामी तथा तनाव (पिटिड या डिम्पलिंग स्तन सरफेस), स्तन के सभी भागों में सूजन, निपल से मिल्क के अलावा खून या किसी अन्य द्रव्य का रिसाव, स्तन और निपल की स्किन छिलना, स्तन के साइज और शेप में अचानक परिवर्तन, निपल का अंदर की ओर मुड़ना, बगलों में गांठ और सूजन।
नोट: इन लक्षणों का होना कैंसर सुनिश्चित नहीं करता, अनेक मामलों में कैंसर रहित गांठों से भी यही लक्षण होते हैं। अक्सर स्तन में तेज दर्द और गांठ के कॉम्बीनेशन से कैंसर का संदेह होता हैं ऐसे में चिन्ता मुक्त होने के लिये डाक्टर से मिलें। अनेक मामलों में स्तन निपल से द्रव्य रिसाव संक्रमण की वजह से भी होता है।
स्तन में दर्द (मेस्टॉलजिया) के भी अनेक कारण हैं जैसेकि- माहवारी में शरीर में हारमोन्स स्तर बिगड़ना, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, गर्भधारण के लिये लिया जाने वाला ट्रीटमेंट, गलत साइज की ब्रा पहनना, स्तन में सिस्ट या हैवी स्तन।
स्तन में बिनाइन लम्प के कॉमन कारण हैं- इन्फेक्शन, फाइब्रोसाइटिक स्तन डिसीज, फिबरोडेनोमा और फैट निक्रोसिस। स्तन में मौजूद गांठ में दर्द की शिकायत उतनी खतरनाक नहीं है जितना कि नयी दर्दरहित गांठ का बनना। डॉक्टर इसे स्तन कैंसर का कॉमन लक्षण मानते हैं। इसके अलावा निपल की शेप में परिवर्तन, पीरियड के बाद स्तन पेन, अगले पीरियड के बाद नये लम्प का समाप्त न होना और लम्प गोल ना होकर कई कोनों वाली महसूस होना स्तन कैंसर के शुरूआती लक्षण हैं।
एडवांस स्टेज के लक्षण
स्तन कैंसर की एडवांस स्टेज के मुख्य लक्षणों में- केवल एक स्तन का आकार बढ़ना (वन स्तन इनलार्जमेंट), पहले से बनी गांठ का आकार बढ़ना, स्तन स्किन का ऑरेन्ज पील टेक्सचर, योनि में दर्द, अचानक वजन गिरना, बगलों में लिम्फ नोड बढ़ना और स्तन में वेन्स (नसों) का दिखाई देना।
पुरूषों में स्तन कैंसर रेयर हैं और यह बुढापे में होता है। पुरूषों की स्तन में पनपी गांठ के महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा कैंसररस होने के चांस हैं।
किन्हें ज्यादा रिस्क?
उम्र बढ़ने के साथ स्तन कैंसर के चांस बढ़ते हैं, अधिकतर मामलों में 55 या इससे ज्यादा उम्र की महिलायें स्तन कैंसर का शिकार होती हैं। रोजाना शराब पीना, हैवी स्तन यानी स्तन टिश्यूज का अधिक घनत्व, बीआरसीए1 और बीआरसीए2 नामक जीन म्यूटेशन, 12 वर्ष या इससे कम उम्र में माहवारी, 35 या उससे अधिक उम्र में पहले बच्चे को जन्म देना, हारमोन थेरेपी, लेट मेनोपॉज और कभी मां न बनने से भी स्तन कैंसर का रिस्क बढ़ता है।
पुष्टि कैसे होती है?
इसके लिये डाक्टर फिजिकल जांच के अलावा मेमोग्राम, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई का सहारा लेते हैं। स्तन कैंसर का संदेह होने पर उसे कन्फर्म करने के लिये बॉयोप्सी की जाती है।
कितनी तरह का स्तन कैंसर?
इसके दो टाइप हैं-इनवेसिव और नॉनइनवेसिव। इनवेसिव कैंसर स्तन डक्ट और ग्रन्थि से स्तन के अन्य भागों की ओर फैलता है जबकि नॉन इनवेसिव कैंसर ओरिजनल टिश्यू से आगे नहीं फैलता।
डक्टल कार्सिनोमा इन सीटू: यह नॉन इनवेसिव है, इसमें कैंसर सेल्स केवल स्तन की डक्ट तक सीमित रहते हैं और किसी अन्य हिस्से को बरबाद नहीं करते।
लॉब्यूलर कार्सिनोमा इन सीटू: इस नॉन इनवेसिव स्तन कैंसर में मिल्क प्रोड्यूसिंग ग्रन्थि में कैंसर पनपता है और वहीं सीमित रहता है।
इनवेसिव डक्टल कार्सिनोमा: यह सबसे कॉमन है, जो मिल्क डक्ट में पनपकर आसपास के सभी टिश्यू में फैल जाता है। टिश्यू तक पहुंचने के बाद यह अन्य अंगों को अपनी चपेट में ले लेता है।
इनवेसिव लॉब्यूलर कार्सिनोमा: मेडिकल भाषा में इसे आईएलसी कहते हैं, यह स्तन के लॉब्यूल में पनपकर आसपास के टिश्यूज तक फैल जाता है।
पैजेट डिसीज ऑफ द निपल: यह निपल की डक्ट से पनपकर स्तन स्किन और निपल के आसपास के भाग (एरियोला) तक फैल जाता है।
फिलॉड्स ट्यूमर: यह रेयर हैं जो स्तन के कनेक्टिव टिश्यू में पनपता है।
एंजियोसरकोमा: यह स्तन की ब्लड वेस्लस या लिम्फ वेसल्स में पनपता है।
इन्फ्लेमेटरी स्तन कैंसर: यह एग्रेसिव है। इसमें स्तन के आसपास की लिम्फ नोड को कैंसर सेल्स ब्लॉक कर देते हैं, इससे लिम्फ वेसल्स की ड्रेन प्रक्रिया में बाधा आती है और स्तन में सूजन और लालामी आने के साथ मरीज को अचानक गर्मी लगती है। इससे प्रभावित स्तन संतरे के छिलके की तरह हो जाती है।
ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर: यह भी रेयर है, जो केवल 10-20 प्रतिशत मरीजों में ही होता है। यह स्तन सेल्स के एस्ट्रोजन रिसेप्टर, प्रोटेस्ट्रोन रिसेप्टर और एचईआर2 प्रोटीन पर असर डालता है। अन्य कैंसरों की तुलना में यह ज्यादा तेजी से फैलता है।
मेटास्टेटिक स्तन कैंसर: यह स्तन कैंसर की चौथी व एडवांस स्टेज है। इसमें स्तन कैंसर, स्तन से पनपकर शरीर के अन्य भागों जैसे हड्डियों, फेफड़े और लीवर तक फैल जाता है।
कैसे बच सकते हैं स्तन कैंसर से?
जागरूकता ही इसका सबसे बड़ा बचाव है, इसके तहत हैल्दी खान पान अपनायें, डेली शराब सेवन से बचें, मोटापा है तो वजन घटायें और नियमित व्यायाम करें। एक शोध के अनुसार रोजाना एक पैग (30 मिलीलीटर) शराब का सेवन स्तन कैंसर का रिस्क बढ़ा देता है। 40-49 वर्ष की महिलायें साल में एक बार डाक्टर से स्तन की जांच जरूर करवायें, यदि डॉक्टर मेमोग्राफ के लिये कहता है तो इसे अनदेखा न करें। 50-74 वर्ष की महिलायें साल एक बार मेमोग्राफ टेस्ट करवायें। 75 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिये मेमोग्राफ की आवश्यकता नहीं है।
यदि किसी के माता-पिता BRCA1 और BRCA2 नामक जीन म्यूटेशन से ग्रस्त हैं चैकअप करवाते समय डाक्टर को जरूर बतायें। यदि आपमें भी यह विकार पाया जाता है तो इसके लिये प्रोफीलेटिक ट्रीटमेंट का विकल्प उपलब्ध है।
समय-समय पर स्तन की खुद भी जांच करें। इसके लिये माह का कोई एक दिन फिक्स करें और फिर प्रत्येक माह उसी दिन जांच करें। स्तन में किसी तरह का बदलाव या असमान्यता नजर आते ही डाक्टर से मिलें। यदि किसी तरह का स्तन कैंसर डिटेक्ट हो तो तुरन्त इलाज शुरू करें, इसमें देरी घातक हो सकती है। सन् 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में करीब दो लाख 40 हजार महिलाओं की असमय मृत्यु स्तन कैंसर का समय पर इलाज न कराने से हुई।
इलाज क्या है इसका?
स्तन कैंसर के इलाज में स्टेज, प्रकार, गांठ (लम्प) का आकार और ग्रेड मायने रखता है। डाक्टर इन सबको ध्यान में रखकर इसका इलाज चुनते हैं। ज्यादातर मामलों में इसका इलाज सर्जरी है। सर्जरी के अलावा कीमोथेरेपी, टारगेट थेरेपी, रेडियेशन और हारमोन थेरेपी से भी इसकी क्योर होती है। स्तन कैंसर के इलाज में पांच तरह की सर्जरी की जाती हैं-
लम्पेक्टॉमी: इसमें गांठ और उसके आसपास के टिश्यू रिमूव होते हैं शेष स्तन अप्रभावित रहती है।
मास्टेक्टॉमी: इसमें सर्जन समूची स्तन काटकर हटा देता है। डबल मास्टेक्टॉमी में दोनों स्तन रिमूव होती हैं।
सेंटीनोड बॉयोप्सी: इसमें स्तन ट्यूमर से कुछ लिम्फ नोड लेकर बॉयोप्सी करते हैं, यदि कैंसर सेल्स न पाया जाये तो आगे सर्जरी की जरूरत नहीं रहती।
ऑक्सीलरी लिम्फ नोड डाइसेक्शन: यदि डाक्टर को सेंटीनोड बॉयोप्सी में कैंसर सेल मिलते हैं तो कुछ और लिम्फ नोड रिमूव करने के लिये एक और सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
कॉन्टेलेटरल प्रोफीलेटिक मास्टेक्टॉमी: इसमें एक स्तन के कैंसर को दूसरी स्तन तक न फैलने से रोकने के लिये दूसरी स्वस्थ स्तन को सर्जरी से हटा देते हैं।
क्या नजरिया अपनायें?
स्तन कैंसर का शरीर और दिमाग दोनों पर नकारात्मक असर होता है। इसमें, इलाज के दौरान बाल झड़ना, माहवारी में बदलाव, रात को पसीना, अचानक गरमी लगना, जोड़ों में दर्द, वजन बढ़ना, योनि में सूखापन, शरीर में सूजन, त्वचा में परिवर्तन और बांझपन जैसी समस्यायें होती हैं, ऐसे में मानसिक रूप से मजबूत रहने के लिये परिवार और मित्रों का सहयोग जरूरी है। इलाज से पूर्व शरीर पर उसके प्रभाव के बारे में डाक्टर से अच्छी तरह से जानकारी लें, जिससे किसी अनजान लक्षण के उभरने पर मानसिक कष्ट से बचा जा सके। यदि कैंसर ग्रस्त स्तन के इलाज के लिये डॉक्टर स्तन रिमूव करता है तो प्लास्टिक सर्जन से सलाह लें कि रिमूव स्तन की भरपाई किस इम्प्लांट से होगी। स्तन रिकंस्ट्रक्शन में डाक्टर मरीज की स्तन के टिश्यू के अलावा सिलीकॉन और पानी से भरे इम्प्लांट प्रयोग करते हैं। सर्जरी के बाद वजन न बढ़ने दें, खानें में फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ा दें, शुगर सेवन कम करें, ज्यादा पानी पियें और नियमित व्यायाम को अपनी आदत में शामिल करें। यदि शरीर में सूजन की समस्या आये तो डाक्टर की सलाह से डायूरेटिक दवायें लें। कीमोथेरेपी में बाल झड़ते हैं ऐसे में थेरेपी से पहले बाल कटवा लें।
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