चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के सक्रिय राजनीति में उतरने और बिहार से शुरुआत करने वाले ट्विट के बाद सबसे ज्यादा बेचैनी भारतीय जनता पार्टी में है। उनकी घोषणा के तुरंत बाद भाजपा ने ऐसी प्रतिक्रिया दी, जैसे प्रशांत किशोर उसकी जमीन लूटने आ रहे हैं। भाजपा के प्रदेश के सबसे बड़े नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ट्विट करके कहा कि बिहार में किसी नई पार्टी के लिए न कोई जगह है और न कोई संभावना है। उन्होंने कहा कि बिहार में पहले से चार पार्टियां हैं और उन्हीं के बीच राजनीति घूमती है। सवाल है कि पीके की घोषणा से भाजपा की बेचैनी का क्या कारण है? क्या भाजपा को लग रहा है कि पीके की नई पार्टी उसका वोट काट सकती है और जदयू के साथ गठबंधन में भाजपा की जगह ले सकती है?
भाजपा की असली चिंता इसी बात की है कि अगर प्रशांत किशोर अपनी पार्टी बनाते हैं तो वे बिहार के सवर्ण मतदाताओं को अपनी ओर खींच सकते हैं। ध्यान रहे बिहार की सारी क्षेत्रीय पार्टियां पिछड़ी और दलित जातियों की है। राजद, जदयू, लोजपा, हम, वीआईपी सब पिछड़ी या दलित नेताओं की बनाई पार्टियां हैं। भाजपा भी अब लगभग पूरी तरह से पिछड़ी जाति की राजनीति करती है और सवर्ण मतदाताओं को बंधुआ समझती है। तभी उसके चिंता है कि पीके उसके इस बंधुआ वोट को तोड़ सकते हैं।
भाजपा की दूसरी चिंता यह है कि जदयू के साथ गठबंधन में पीके की पार्टी भाजपा की जगह ले सकती है। ध्यान रहे जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर के बहुत अच्छे संबंध हैं। उन्होंने जदयू और राजद को साथ मिला कर 2015 का विधानसभा चुनाव लड़ाया था, जिसमें भाजपा बुरी तरह से हारी थी। पिछले दिनों दिल्ली में पीके और नीतीश कुमार की मुलाकात भी हुई थी। तभी बिहार से प्रशांत किशोर के राजनीति शुरू करना भाजपा के लिए बड़ी चिंता की बात है।
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