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Bhopal Gas Tragedy: Supreme Crourt के फैसले से टूट गई गैस पीड़ितों की सारी उम्मीदें

Supreme Crourt ने केंद्र की क्यूरेटिव पिटीशन खारिज कर दी है। यानी 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा बढ़कर नहीं मिलेगा। 13 साल पुरानी याचिका पर जनवरी में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की उस क्येरिटव पिटीशन यानी उपचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें केंद्र ने भोपाल गैस त्रासदी को लेकर डाउ केमिकल्स से अतिरिक्त मुआवजे की मांग की थी। इससे गैस पीड़ितों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार को भी तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में दाखिल क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई जनवरी में पूरी कर ली थी। फैसला सुरक्षित रखा था और मंगलवार को यह फैसला सुनाया गया।

केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि 1989 में जब सुप्रीम कोर्ट ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा गया था। इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या ढाई गुना से अधिक बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में हर्जाना भी बढ़ना चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट हर्जाना बढ़ाने को मान जाता तो इसका लाभ भोपाल के लाखों गैस पीड़ितों को भी मिलता। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और साफ कर दिया कि यूनियन कार्बाइड की पैरेंट कंपनी डाउ केमिकल्स से जो वन-टाइम डील 1989 में हुई थी, उसे दोबारा नहीं खोला जा सकता।

इस मामले में कब क्या हुआ

  • 2-3 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई।
  • 4 मई 1989 को सुप्रीम कोर्ट ने यूसीसी से 470 मिलियन डॉलर हर्जाना लेने का आदेश सुनाया।
  • 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की रिव्यू पिटीशन खारिज की। हर्जाना बढ़ाने की मांग खारिज हुई थी। कहा था कि अतिरिक्त मुआवजा केंद्र सरकार को देना होगा।
  • 22 दिसंबर 2010 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन लगाई। इसमें अतिरिक्त हर्जाना मांगा गया था।
  • 14 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने इस क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया।


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Written by Amardeep Jha

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