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बेबस किसान की बेटी जिसने पिता को परेशान देख IAS बनने का किया फैसला,अफसर बनकर दिलाया पिता को सम्मान,जानिए रोहिणी की कहानी


हर साल लाखों की संख्या में बच्चे आईएएस के सपने देखते हैं और यूपीएससी की परीक्षा भी देते हैं लेकिन इसमें सफल सिर्फ कुछ ही बच्चे हो पाते हैं। आईएएस अफसर बनने के लिए आपको सही रणनीति अपनानी पड़ती है और साथ ही साथ कड़ी मेहनत करनी पड़ती है जिससे आप अपनी मंजिल को हासिल कर पाएंगे।

कई ऐसे बच्चे होते हैं जो मुश्किलों से हार मान कर अपने सपनों को छोड़ देते हैं लेकिन इनमें कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो मुश्किलों के आगे हार नहीं मानते और लगातार कोशिश करते रहते हैं। कुछ बच्चे तब तक कोशिश करते हैं जब तक वह सफल नहीं हो जाते।

आज हम आपको एक ऐसी लड़की रोहिणी भाजीभाकरे की कहानी बताने जा रहे हैं जो पिता को सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाता देख परेशान हो गई थी और उसने इस नौकरशाही में आईएएस ऑफिसर बन कर इस व्यवस्था को सही करने की ठान लिया था।

उनकी IAS ऑफिसर बनने की जिद ने उन्हें सफलता की सीढ़ी पर चढ़ा दिया. आईएएस बनकर ना सिर्फ उन्होंने अपने परिवार का नाम रोशन किया बल्कि जो अधिकारी आम जनता को परेशान करते हैं उनके लिए नजीर भी पेश की.

महाराष्ट्र के सोलापुर में रोहिणी भाजीभाकरे (rohini bhajibhakare ias family) का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदास था। उन्होंने अपने शुरुआती पढ़ाई सोलापुर के एक सरकारी स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने कंप्यूटर साइंस से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पुणे के सरकारी कॉलेज से पूरी कर ली।

ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद वो यूपीएससी की तैयारी करने लगी। मेहनती और लगनशील होने की वजह से उन्हें यूपीएससी की परीक्षा में जल्द ही सफलता मिल गई।

घर में आर्थिक तंगी होने की वजह से उन्होंने (rohini bhajibhakare education) यूपीएससी की तैयारी के दौरान किसी भी तरह की कोचिंग का सहारा नहीं लिया। वो जानती थी की यूपीएससी परीक्षा में आपके धैर्य, ज्ञान और आपके व्यवहार का आकलन किया जाता है। इसलिए उन्हें उन्हें रात-दिन एक कर सेल्फ स्टडी को सफलता का जरिया बना लिया. उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2008 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। उनके पति का नाम विजयेन्द्र बिदारी (Vijyendra Bidari) है.

रोहिणी भजिभाकरे एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से हैं। उनके पिता रामदास खेती-बाड़ी का काम किया करते थे। खेती के काम के सिलसिले में उन्हें आए दिन अधिकारियों के पास अपने काम के सिलसिले में जाना पड़ता था। रोहिणी बताती हैं कि जब वह 9 साल की थी तब उनके पिता को अधिकारी के एक दस्तखत के लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते थे। कभी-कभी तो ऐसा होता था कि कई बार चक्कर लगाने के बावजूद भी अधिकारी दस्तखत करने से मना कर देते थे।

इस तरह की नौकरशाही देखकर उन्होंने बचपन में ही आईएएस बनने का मन बना लिया था। जब रोहिणी ने बड़े होकर अपने इस सपने को पिता के साथ साझा किया तो वो बहुत खुश हुए। उन्होंने अपनी बेटी को सलाह देते हुए कहा कि जब तुम कलेक्टर बन जाओ तो तुम जरूरतमंद लोगों की मदद करना।

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Written by Jyoti Mishra

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