कोविड-19 के कारण भारत में 47 लाख लोग मरे। क्या भारत में किसी जानकार और संवेदनशील व्यक्ति को इस आंकड़े पर शक होगा? लेकिन भारत सरकार को है, तो संभवतः उसकी वजह यह है कि डब्लूएचओ का ये आकलन उसके हेडलाइन मैनेजमेंट के खिलाफ चला गया है।
भारत सरकार को आखिर यह क्यों महसूस होता है कि सारी दुनिया उसके खिलाफ है? दुनिया की कोई संस्था कोई रिपोर्ट जारी करे और उसमें भारत की छवि नरेंद्र मोदी सरकार की अपेक्षाओं के मुताबिक ना उभरे, तो यह सरकार तुरंत उसे तैयार करने के तरीके या मंशा पर सवाल उठा देती है। इसे जरूर सरकार का दुर्भाग्य समझा जाएगा कि ऐसी ज्यादातर रिपोर्टें उनकी मर्जी के खिलाफ आ रही हैं। बात चाहे डेमोक्रेसी इंडेक्स की हो या प्रेस फ्रीडम इंडेक्स या फिर हंगर इंडेक्स की- कही भी भारत की सूरत उज्ज्व नहीं दिखती। अब वैसा ही कोरोना महामारी के दौरान हुई मौतों की संख्या को लेकर हुआ है। इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट जारी होने के तुरंत बाद भारत ने इसे तैयार करने के तरीके पर सवाल उठा दिए। बल्कि पहले से माहौल तैयार करने के लिए भारत ने एक दिन पहले ही अपनी तरफ से आंकड़े जारी किए थे। उसमें कुल मिला कर 5 लाख 23 हजार 889 लोगों के मरने की बात कही गई।
भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि डब्लूएचओ का विश्लेषण और आंकड़े जुटाने का तरीका “संदिग्ध” है। भारत ने यह शिकायत भी की है कि आंकड़ों को भारत की चिंता दूर किये बगैर ही जारी कर दिया गया है। बहरहाल, असल सूरत यह है कि लंबे समय से दुनिया को डब्लूएचओ की इस रिपोर्ट का इंतजार था, ताकि यह पता चल सके कि इस महामारी में कुल कितने लोगों की जान गई। डब्लूएचओ का आकलन कोविड-19 के कारण प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एक जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 के बीच हुई कुल मौतों की संख्या को लेकर है। इसके मुताबिक इस अवधि में कोविड-19 के कारण भारत में कम से कम 47 लाख लोग मरे। क्या भारत में किसी जानकार और संवेदनशील व्यक्ति को इस आंकड़े पर शक होगा? लेकिन भारत सरकार को है, तो संभवतः उसकी वजह यह है कि डब्लूएचओ का आकलन उसके हेडलाइन मैनेजमेंट के खिलाफ चला गया है।
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