दिल्ली सरकार की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, राज्य शुल्क नियमन समिति में विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रतिनिधि के तौर पर संयुक्त रजिस्ट्रार ने विश्वविद्यालय से संबद्ध तीन कॉलेजों की गलत रिपोर्ट पेश की। इससे ग्रेडिंग के साथ-साथ कॉलेजों की फीस पर भी असर पड़ा। बयान में जिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है, उसका नाम नहीं है।
रिपोर्ट पर असंतोष व्यक्त करते हुए, तीनों कॉलेजों ने अदालत में जाकर पुनर्मूल्यांकन की मांग की। अदालत के निर्देश के बाद, रिपोर्ट का पुनर्मूल्यांकन किया गया और इसे गलत पाया गया।
उन्होंने कहा, ‘राज्य शुल्क नियमन समिति का काम बेहद संवेदनशील है. ऐसे में संयुक्त रजिस्ट्रार जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए इस तरह की लापरवाही बेहद गैर जिम्मेदाराना हरकत को दर्शाती है। शिक्षा दिल्ली सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और शिक्षा में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
दिल्ली प्रोफेशनल कॉलेज एंड इंस्टीट्यूशन एक्ट 2007 के तहत राज्य शुल्क विनियमन समिति का गठन किया गया है। समिति आईपी विश्वविद्यालय के तहत स्व-वित्तपोषित कॉलेजों का संयुक्त मूल्यांकन करती है। इस आकलन के आधार पर समिति अपनी रिपोर्ट देती है। उस रिपोर्ट के आधार पर संस्थानों की ग्रेडिंग की जाती है, और उनकी फीस निर्धारित की जाती है।
उन्होंने कहा, ‘यह समिति सरकार द्वारा इसलिए बनाई गई है ताकि कोई भी कॉलेज मनमाने ढंग से अपनी फीस न बढ़ा सके और छात्रों पर अनावश्यक शुल्क का बोझ न डाल सके.’
यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने इस मामले के बारे में हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया।
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