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उत्तराखंडः गंगोत्री मार्ग के घने जंगलों पर मंडराता खतरा

उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक में रहने वाले मोहन सिंह राणा ने 17 साल सेना में नौकरी की. अब यह रिटायर फौजी संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में अपने जंगलों को बचाने के लिए सरकार से लड़ रहे हैं.

“यह बड़े अफसोस की बात है. यहां हर्सिल इलाके में हजारों देवदार के पेड़ हैं. अगर सरकार जो योजना बना रही है उसके मुताबिक काम हुआ तो ये सारे पेड़ कट जाएंगे. इसे रोका जा सकता है. यह नहीं होना चाहिए,” मोहन सिंह ने बताया.

मोहन सिंह उत्तरकाशी-गंगोत्री चार धाम यात्रा मार्ग की बात कर रहे हैं जिसके लिए भागीरथी इको सेंसटिव जोन में 6000 देवदार के पेड़ों को चिन्हित किया गया है. पर्यावरण की नजर से दुनिया की सबसे संवेदनशील जगहों में गिना जाने वाला यह हिमालयी क्षेत्र ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण अधिक संकटग्रस्त है.

चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है प्रोजेक्ट

उत्तरकाशी जिले में स्थानीय लोग जहां सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटने का विरोध कर रहे हैं वह 825 किलोमीटर लंबे उस चारधाम यात्रा मार्ग का हिस्सा है जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिसंबर 2016 में की गई.

इस मानचित्र में धरासू से गंगोत्री की ओर करीब 90 किलोमीटर चलने पर झाला से भैंरोघाटी का 25 किलोमीटर का घना जंगल शुरू होता है जो भागीरथी के उद्गम गंगोत्री की ओर ले जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र में नेशनल हाईवे का चौड़ीकरण बिना पेड़ काटे भी हो सकता है लेकिन सरकार वृक्ष काटने पर आमादा है.

मोहन सिंह कहते हैं, “यहां ग्रामीण सड़क चौड़ीकरण का विरोध नहीं कर रहे लेकिन इसकी एक सीमा होनी चाहिए. इन पहाड़ों पर हमें 90 या 100 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गाड़ियां नहीं दौड़ानी होतीं इसलिए बिना पेड़ काटे पर्याप्त चौड़ाई की सड़क बन सकती है. हमने यह देखा है कि कई जगह टूटी सड़कों की मरम्मत नहीं की जाती जिस कारण सारा जाम लगता है. पेड़ों के अंधाधुंध कटने से भूस्खलन अधिक होगा और वनस्पतियां और खेती नष्ट हो जाएगी.”

सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों का कहना है कि कटने वाले देवदार के पेड़ों की संख्या सरकार द्वारा बहुत कम बताई जा रही है. हिमालय बचाओ अभियान के सदस्य सुरेश भाई ने कहा, “सरकार कह रही है कि इस क्षेत्र में 6,000 पेड़ कटेंगे लेकिन असल में वन विभाग करीब दो लाख 80 हजार पेड़ काटेगा जिनमें कई छोटे और औषधीय महत्व के पेड़ हैं. वन विभाग ने अपनी गिनती में उन पेड़ों की बात कही है जो 10 फुट या उससे अधिक मोटाई (परिधि) के हैं और काफी पुराने पेड़ हैं. जिन पेड़ों को चिन्हित किया गया है उनमें से हरेक पेड़ के चारों और डेढ़ दर्जन से अधिक छोटे और नवजात पेड़ हैं. सरकार उन्हें नहीं गिन रही है जो कि एक बहुत बड़ा अपराध है.”

उत्तराखंड के वन अधिकारियों ने आधिकारिक तौर पर बात नहीं की. उत्तरकाशी जिले के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर पुनीत तोमर ने ग्रामीणों की इस आशंका पर पूछे गए सवाल का अभी तक जवाब नहीं दिया है. उनका कहना है कि जंगलों में आग, जानवरों के इंसानी बसावटों पर हमले और गंगोत्री के कपाट खुलने के कार्यक्रमों के कारण वह व्यस्त हैं और उन्हें जवाब के लिए समय चाहिए. इस विषय पर वन अधिकारी तोमर का कोई जवाब मिलते ही इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

चुनाव से पहले पेड़ न काटने की चिट्ठी

हालांकि इसी साल फरवरी में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले सड़क मंत्रालय की ओर से राज्य को चिट्ठी लिखी गई जिसमें स्पष्ट कहा गया है हाईवे निर्माण के लिए पेड़ काटना “आखिरी उपाय” होगा. इसकी जगह पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जाएगा. चिट्ठी कहती है कि इससे “राज्य के जंगलों, बुग्यालों और ग्लेशियरों को संरक्षित” करने में मदद मिलेगी.

इस चिट्ठी को लिखने वाले चार धाम यात्रा प्रोजेक्ट के इंचार्ज और अभियन्ता प्रमुख वी एस खैरा ने कहा, “गंगोत्री हाईवे पर अभी उत्तरकाशी तक सड़क बन गई है लेकिन उसके आगे भागीरथी इको सेंसटिव जोन में अभी कार्य शुरू नहीं हुआ है क्योंकि वहां कई (वन संबंधी) अनुमति ली जानी हैं. हम इस बारे में अभी कीमत संबंधी आकलन कर रहे हैं.”

यह पूछे जाने पर कि मंत्रालय पेड़ों को बचाने के वादे को कैसे क्रियान्वित करेगा खैरा ने कहा, “जो भी तकनीकी रूप से संभव उपाय हैं सभी अपनाए जाएंगे. हम पेड़ों की क्षति कम से कम करने की कोशिश करेंगे.”

हालांकि पेड़ों को ट्रांसप्लांट करना कितना मुमकिन होगा इस पर भी सवाल है. पर्यावरणविद् और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीआर बाबू ने कहा, “ट्री ट्रांसप्लांटेशन का विचार ही बताता है कि नीति नियंताओं को पर्यावरण की समझ नहीं है. पहाड़ों का भूगोल और वहां की पारिस्थितिकी क्या ऐसी है कि वहां पेड़ ट्रांसप्लांट हो सकें! वहां (देवदार, बांज, बुरांश) सारे पेड़ नेटिव हैं और वह एक खास ऊंचाई पर ही उगते हैं और वहां एक ऊंचाई पर सीमित जगह है. जहां आप पेड़ हटा या काट रहे हैं वहां दूसरे पेड़ कैसे ट्रांसप्लांट होंगे. यह सिर्फ आंखों में धूल झोंकने वाली बात है.”


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Written by rannlabadmin

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